बदलते जलवायु और पानी की कमी के दौर में पारंपरिक खेती के साथ-साथ बागवानी फसलों की तरफ किसानों का रुझान बढ़ रहा है। इन्हीं में से एक है खजूर की खेती (Date Palm Farming), जो कम पानी, शुष्क और गर्म जलवायु में भी किसानों को बंपर मुनाफा दे सकती है। यह एक बहुवर्षीय फसल है, जिसे एक बार लगाने के बाद किसान 60 से 70 वर्षों तक लगातार आय प्राप्त कर सकते हैं। आज हम “द एडवांस एग्रीकल्चर” के माध्यम से आपको खजूर की उन्नत और सफल वैज्ञानिक खेती की संपूर्ण जानकारी (A to Z) देंगे, ताकि आप भी इस लाभकारी खेती को अपनाकर अपनी आय बढ़ा सकें।
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी (Climate and Soil)
खजूर मूल रूप से एक शुष्क और गर्म जलवायु का पौधा है, जिसे अत्यधिक वर्षा की आवश्यकता नहीं होती। यह पौधा तेज धूप में अच्छी तरह से बढ़ता है और न्यूनतम 0°C से 5°C तथा अधिकतम 45°C से 50°C तक का तापमान सहन कर सकता है। इसी कारण यह मरुस्थलीय और रेगिस्तानी क्षेत्रों के लिए एक उत्कृष्ट फसल मानी जाती है। खजूर की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, जिसका पीएच मान 7 से 8.5 के बीच हो। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह खारे पानी में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है, जिससे उन क्षेत्रों के किसानों के लिए भी यह एक वरदान है जहाँ पानी की गुणवत्ता अच्छी नहीं है।
खेत की तैयारी और पौध रोपण (Field Preparation and Plantation)
खजूर की खेती के लिए खेत की तैयारी बहुत महत्वपूर्ण है। सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करने वाले हल से 2-3 बार जुताई करें और खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें ताकि मिट्टी को अच्छी धूप लग सके। इसके बाद रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा और समतल बना लें। पौध रोपण के लिए जुलाई से सितंबर का महीना सबसे अनुकूल होता है। पौधे लगाने के लिए 3 फीट चौड़े और 3 फीट गहरे गड्ढे खोदें। लाइन से लाइन की दूरी 25 फीट और पौधे से पौधे की दूरी 25 फीट रखें। इस हिसाब से एक एकड़ में लगभग 65 से 70 पौधे लगाए जा सकते हैं। पौधरोपण के बाद सिंचाई करना आवश्यक है।
उन्नत किस्में और पौधे का चयन (Improved Varieties and Plant Selection)
खजूर की व्यावसायिक खेती के लिए सही किस्मों का चुनाव करना बेहद जरूरी है। भारत में खेती के लिए कुछ प्रमुख और लोकप्रिय किस्में इस प्रकार हैं:
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खुनेजी किस्म
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बरही किस्म
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इजरायली खजूर
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मदसरीमेल (नर पौधा)
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मैडजूल किस्म
पौधे तैयार करने के तीन तरीके हैं – बीज से, सकर (Suckers) से और टिशू कल्चर से। व्यावसायिक खेती के लिए टिशू कल्चर से तैयार किए गए पौधे सबसे उत्तम माने जाते हैं, क्योंकि ये जल्दी (लगभग 4 साल में) फल देना शुरू कर देते हैं और इनकी गुणवत्ता भी अच्छी होती है। पौधे हमेशा विश्वसनीय नर्सरी या कृषि विश्वविद्यालय से ही खरीदें।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन (Fertilizer Management)
खजूर की फसल को रासायनिक खादों की अधिक आवश्यकता नहीं होती, लेकिन जैविक खादों का उपयोग करने से उत्पादन और गुणवत्ता दोनों में वृद्धि होती है।
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बेसल डोज़: पौध रोपण के समय गड्ढों में 3 से 8 ट्रॉली अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद, 50 किलो NPK (12:32:16), 20 किलो MOP (पोटाश) और 5 किलो रीजेंट (कीटनाशक) मिलाकर डालें।
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जैविक खाद: समय-समय पर प्रति पौधा 5 किलो गोबर की खाद, सरसों की खली, नीम की खली या मुर्गी की खाद का प्रयोग करें।
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फलों की अवस्था में स्प्रे: फलों के विकास के समय NPK 19:19:19 (1 किलो) और बोरॉन (500 ग्राम) को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करने से फलों की गुणवत्ता बढ़ती है।
सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण (Irrigation and Weed Control)
खजूर को कम पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन पौधे की शुरुआती अवस्था और फल लगने के समय सिंचाई करना जरूरी है। ड्रिप सिंचाई (20 mm बटन ड्रिप) इसके लिए सबसे उत्तम विधि है। गर्मियों में 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहें और खेत को साफ रखें।
हस्त परागण: सफल उत्पादन की कुंजी (Hand Pollination: Key to Successful Production)
खजूर का पौधा एकलिंगी होता है, यानी नर और मादा फूल अलग-अलग पौधों पर आते हैं। इसमें मधुमक्खियों या अन्य कीटों द्वारा परागण संभव नहीं होता, इसलिए अच्छी फलत के लिए ‘हस्त परागण’ (Hand Pollination) करना अनिवार्य है। इसके लिए, नर पौधे के फूलों को काटकर मादा पौधे के फूलों के गुच्छों (Bunch) पर बांध दिया जाता है ताकि परागण की क्रिया सफलतापूर्वक हो सके। आमतौर पर 65-70 पौधों के बाग में 5 नर पौधे लगाना पर्याप्त होता है।
लागत, उत्पादन और मुनाफा: एक आकर्षक गणित (Cost, Production and Profit)
खजूर की खेती एक दीर्घकालिक और अत्यधिक लाभकारी निवेश है।
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लागत: टिशू कल्चर का एक पौधा लगभग ₹5,000 का आता है। एक एकड़ में 70 पौधे लगाने पर पौधों का खर्च ₹3,50,000 आता है। अन्य खर्च मिलाकर कुल लागत लगभग ₹4 लाख तक जा सकती है। हालांकि, राज्य सरकारें इस पर 75% तक की सब्सिडी देती हैं, जिससे किसान का वास्तविक खर्च काफी कम होकर ₹1 लाख से ₹1.5 लाख के बीच आ जाता है।
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उत्पादन: एक पूर्ण विकसित पौधा प्रति वर्ष 180 से 250 किलोग्राम तक फल देता है। यदि एक एकड़ में 65 पौधों से औसतन 180 किलो उत्पादन भी मिले, तो कुल उत्पादन 11,700 किलोग्राम (117 क्विंटल) होता है।
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मुनाफा: बाजार में खजूर का थोक भाव ₹50 से ₹150 प्रति किलोग्राम तक मिलता है। यदि औसत भाव ₹70 प्रति किलो भी मानें, तो कुल मुनाफा ₹8,19,000 होता है। इसमें से ₹2 लाख की लागत घटाने पर भी किसान को प्रति एकड़ ₹6,19,000 का शुद्ध लाभ मिल सकता है। जैसे-जैसे पौधे की उम्र बढ़ती है, उत्पादन भी बढ़ता है और मुनाफा भी बढ़ता जाता है।